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१७६ | जैन कथामाला (राम-कथा)
प्रसूतिगृह के चारों ओर दास-दासियों के जमघट में से नवजात - शिशु का हरण कौन कर ले गया - आश्चर्य की बात थी । महल का कौन-कौना छान डाला गया, दिशा विदिशाओं में अनुचर भेजे गये किन्तु कुमार का कहीं पता न लगा । निराश राजा जनक हृदय थाम कर रह गये । रानी ने भी यह सोचकर सन्तोष कर लिया - उसके एक पुत्री' ही हुई थी, पुत्र हुआ ही नहीं ।
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१ उत्तर पुराण में सीता के जन्म की एक अन्य ही कथा दी गई हैंएक दिन लंका का राजा दशानन अपनी रानी के साथ वन-क्रीड़ा को गया । वहाँ विजयार्द्ध पर्वत के अचलक नगर के स्वामी राजा अमितवेग की पुत्री मणिमती विद्या सिद्ध कर रही थी । उसे देखकर दशानन काम के वशीभूत हो गया । उस कन्या को वश में करने के लिए उसने उसकी सिद्ध की हुई विद्या हरण कर ली । वह कन्या. विद्या सिद्धि के हेतु बारह वर्ष तक उपवास करके वहुत क्षीण हो गई थी । उसे रावण पर क्रोध आ गया और उसने निदान किया कि 'अगले जन्म में मैं इसकी पुत्री होकर इसके सर्वनाश का कारण बनूंगी ।'
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इस निदान के कारण वह कन्या मरकर मन्दोदरी के गर्भ में आई । उसका जन्म होते ही लंका में भूकम्प आदि विभिन्न प्रकार के उपद्रव होने लगे । नैमितिकों ने स्पष्ट कह दिया कि यह कन्या लंकापति रावण के नाश का कारण होगी ।
भयभीत होकर दशानन ने मारीच को आज्ञा दी कि इस कन्या को कहीं दूसरी जगह छोड़ आओ । रावण की आज्ञानुसार मारीच मन्दोदरी के पास गया और उसे सम्पूर्ण बात बता दी ।
मन्दोदरी भी रावण की आज्ञा के उल्लंघन का साहस न कर सकी। उसने पुत्री की एक सन्दूक में बहुत सा द्रव्य और एक पत्र लिखकर रख दिया |