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________________ १६८ | जैन कथामाला (राम-कथा) भरत और शत्रुघ्न भी समय पाकर युवक हो गये । चारों भाइयों में घनिष्ठ स्नेह था। इसके बारह महीने बाद चैत्र मास की शुक्ला नवमी, पुनर्वनु नक्षत्र और कर्क लग्न में कौशल्या ने राम को जन्म दिया। उस समय सूर्य, मंगल, शनि, गुरु और शुक्र ये पांचों ग्रह अपने-अपने उच्च स्थानों में थे तथा लग्न में चन्द्रमा के साथ गुरु भी विराजमान थे। कैकयी के गर्भ से भरत का जन्म हुआ। तदनन्तर सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया । भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र और मीन लग्न में हुआ। लक्ष्मण और शत्रुघ्न के जन्म के समय आपलेपा नक्षत्र और कर्क लग्न थी। उस समय सूर्य अपने उच्च स्थान पर था। उस समय देवतालों ने पुष्पवृष्टि की और नाच-गाकर आनन्द मनाया। [वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड] (२) विष्णुजी के पास जाकर देवता, गंधर्व, यक्ष, महर्षि गणों ने रावण के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। इस पर विष्णुजी ने उन्हें अभय दिया और अपने को चार स्वरूपों में प्रगट करने तथा राजा दशरथ को पिता बनाने का निश्चय किया । इस प्रकार राम-लक्ष्मण-भरत-शत्रुघ्न चारों भाई विष्णु के ही अवतार थे। [वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड] (ख) तुलसीदासकृत रामचरितमानस में राम के जन्म के तीन कारण वताये गये हैं : (१) मुनि नारद का विष्णु में अधिक प्रेम देखकर देवराज इन्द्र को भय हुआ कि कहीं नारद स्वर्ग पर अधिकार न कर लें। इसलिए उसने उन्हें मोहित करने के लिए कामदेव को भेजा, किन्तु कामदेव का नारद पर कुछ वश न चझा। वह निराश होकर इन्द्र के पास वापस चला गया।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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