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१०४ | जैन कथामाला (राम-कथा) के साथ विहार करने लगे। एक बार मुनिसंघ विहार करता हुआ रथावर्त पर्वत पर आया। मुनि आनन्दमाली एकान्त स्थान में ध्यानावस्थित हो गये। तडित्प्रभ की मुनि पर दृष्टि पड़ी तो वह ईर्ष्या से जल उठा और उन्हें बाँधकर अनेक प्रकार के कष्ट देने लगा।
श्रमण परीसहों से घबड़ाते नहीं, वरन् और भी आत्मलीन हो जाते हैं। मुनि आनन्दमाली भी परीसहों में अडोल-अकम्प हो गये। . किन्तु संघाचार्य कल्याण गणधर से मुनि का अकल्याण नहीं देखा गया। वे तेजोलेश्या का प्रयोग तडित्प्रभ पर करने ही वाले थे कि उसकी पत्नी सत्यश्री कहीं से आ गई। उसने भक्तिभाव से संघाचार्य की विनय की और उसे वचा लिया।
अनेक जन्मों से भव परिभ्रमण करता हुआ तडित्प्रभ का जीव तुम्हारे रूप में उत्पन्न हुआ। ... केवली भगवान ने इन्द्र को सम्बोधित करके कहा
–इन्द्र ! तुम्ही तडित्प्रभ के जीव हो और मूनि के तिरस्कार एवं प्रहार रूपी घोर पापकर्म के कारण ही तुम्हें यह अपमान सहना पड़ा है।
१ यहाँ इन्द्र के पराभव का कारण अहिल्या के साथ बलात्कार बताया है।
अहिल्या गौतम ऋपि की पत्नी थी । इन्द्र ने महर्षि गौतम का रूप रखकर उसे दूषित कर दिया था। उसी पाप के फलस्वरूप इन्द्र को पराजित होना पड़ा था।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड] विशेष—यहाँ इन्द्र असली है और वह अलकापुरी का स्वामी, देवराज
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