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सदाचार की प्रेरणा
दिग्विजय हेतु लंका से निकले हुए रावण को अठारह वर्ष हो चुके थे । उसके हृदय में विचार आया कि मेरु पर्वत के अर्हन्तों - भगवन्तों की वंदना की जाय । दृढ़ निश्चयी व्यक्तियों के विचारों को कार्यरूप में परिणत होते देर नहीं लगती । वह वंदना करने चला गया ।
उसकी अनुपस्थिति में कुम्भकर्ण और विभीषण क्या करें ? कर्मशील पुरुष निठल्ले तो वैठ नहीं सकते । वे पूर्व दिशा में इन्द्रराजा के दिक्पाल नलकुबर को पकड़ने के लिए चल दिये । रावण की आज्ञा उन्होंने पहले ही ले ली थी ।
नलकुवर' दुर्लध्यपुर का राजा था। उसने आशाणी विद्या के द्वारा नगर के चारों और सौ योजन पर्यन्त अग्निमय किला सा बना
का राजा और
माना गया है और
१ नलकुवर को कैलास पर्वत के समीप के किसी नगर वैश्रवण का पुत्र माना गया है । रम्भा को अप्सरा नलकुवर की पत्नी । इन्द्र को विजय करने हेतु जव रावण जा रहा था तो मार्ग ने उसने कैलास के समीप डेरा डाला । उस समय उसे रम्भा अप्सरा जाती हुई दिखाई दी । कामाभिभूत रावण ने उसके साथ बलात्कार कर डाला । रम्मा कहती ही रह गई कि वह और नलकुबर की वधु है । रम्भा से समस्त वर्णन
वैश्रवण की पुत्रवधू सुनकर वैश्रवण ने