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________________ सती प्रथा–कुवलयमाला में सतीप्रथा का दो बार उल्लेख है। सन्ध्या वर्णन के प्रसंग में सूर्य का अनुकरण करने वाली संध्या की उपमा अनुमरण करने वाली कुल वालिका से दी गयी है ।13 काम गजेन्द्र का यह सलाह दी गयी थी कि पति के मरने पर पत्नी का अनुमरण करना तो उचित है, किन्तु किसी महिला के लिए किसी पुरूष द्वारा अनुमरण करना शास्त्रों में निंदित माना गया है। इसी तरह का उल्लेख अन्य ग्रन्थों में मिलता है ।314 वस्त्र और आभूषण समराइच्चकहा में वस्त्रों का वर्णन इस प्रकार है: अंशुक315-एक प्रकार का महीन वस्त्र होता है। अनुयोग द्वार सूत्र में कीटज वस्त्र के पाँच प्रकार बतलाये हैं316—पट्ट, मलय, अंशुक, चीनांशुक और कृमिराग । पट्टांशुक317–पाट सूत्र से बने वस्त्र । चीनांशुक318–पतला रेशमी वस्त्र । दुगुल्ल–यह वस्त्र मृदुल और स्फटिक के समान निर्मल था। उपरोक्त के अतिरिक्त देव दूष्य, दुकूल, अर्धचीनांशुक, उत्तरीय, स्तनाच्छादन, क्षौम युगल, तूली, गण्डोपधान, आलिंगणिका, मसूरक वस्त्रों का प्रचलन था। उद्योतन सूरि ने कुवलयमाला में अनके वस्त्रों का उल्लेख किया है जिनकी सूची इस प्रकार है: 1. अर्धसुवर्णवस्त्र युगल 2. उत्तरीय 3. उपरि पटांशुक 4. पटांशुक युगल 5. उपरिमवस्त्र 6. उपरिस्तनवस्त्र 7. कंठ-कप्पड 8. कंथा-कप्पड 9. जीर्ण कंथा 10. कंबल 11. कच्छा 12. कसिणायार 13. कसिणपच्छायण 14. कुस-सत्थर 15. कूर्पासक 16. क्षोम (59)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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