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नारी आगदत्ता96 एक सारथी थे जो सन्यासी हो गये। आगदत्त ने नारी के चरित्र पर एक आश्चर्यजनक टिप्पणी किया “हिमालय की ऊँचाई नापना आसान है और गंगा के बालू के कणों को गिना जा सकता है परन्तु नारी के मन के अन्दर की बात को समझना अत्यन्त कठिन है। नारी पति के मार्ग मे बाधक होती है। वह इसलोक और परलोक दोनो के लिये पति के मार्ग में बाधक है197। यह टिप्पणी उस व्यक्ति की है जिसे यह ज्ञात हुआ कि उसकी पत्नी डाकुओं से अपने जीवन की रक्षा करने के लिये अपने पति को मारने के लिये तैयार थी। धम्मिल ने उपरोक्त टिप्पणी को स्वीकार नही किया। धनश्री198 की कहानी की सहायता से जो एक व्यवसायी की पत्नी थी, एक दूसरा पथ नारी के चरित्र के सम्बन्ध में ज्ञात होता है। धनश्री अपने पति द्वारा त्याग दी गयी क्योंकि उसके पति के अन्त:करण में सम्पूर्ण नारी जाति के विरुद्ध दुर्भाव की गाँठ दृढ़ हो गई थी। इसका कारण यह था कि वह अपनी माता के दुर्व्यवाहार से पीड़ित था। धनश्री जीवन पर्यन्त पतिब्रता रही यहाँ तक की एक राज्य अधिकारी उसके शील को भंग करना चाहता था जिसकी, धनश्री ने हत्या कर डाली । रुपयों को ऐंठ कर एक गणिका ने धम्मिल को घर से बाहर निकाल दिया199 ।
पति का पत्नी के ऊपर स्वामित्व विवाह के दिन ही वेवावती ने घोषित किया कि आज से उसका (पतिका) अधिकार उसके जीवन पर हो गया और वह मेरा देव है ।200 पति के प्रति नारी का ऐसा दृष्टिकोण उभय लोकों के सम्बन्ध में प्रशंसनीय समझा जाता था।201 सच्चभामा के एक कथन से पति के स्वामित्व का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है; पत्नी का शिशु जो उसके द्वारा (पति) प्यार पाता है वह शिशु पति के समान है और जो शिशु पति के द्वारा प्यार नहीं पाते हैं वे देखने में अच्छे नहीं होते ।202
वासुदेव हिण्डी के अनुसार पत्नी सदैव अपने पतिब्रता धर्म के प्रति सावधान रहती थी। वासुदेव की एक पत्नी ने अपनी नौकरानी के माध्यम से पति के पास संदेश भेजा। पत्र में
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