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________________ रखा जा सकता है, जिन्हें उद्योतन ने अनार्य एवं धर्म, अर्थ काम से रहित कहा है। आठवीं से 12वीं शताब्दी तक के विभिन्न जैन कथाकारों ने अपने ग्रंथों में इन जातियों में से अधिकांश को अन्त्यज के अन्तर्गत माना है। ये जातियाँ प्राय: नगर के बाहर निवास करती थीं। डोंब- उद्योतन ने डोंब का उल्लेख कईबार किया है। एक प्रसंग में डोंब को पटह बजाने वाला कहा गया है, जिसके शब्दों से डोंब के बच्चे कभी भयभीत नहीं होते थे-(किं कोई डोंब - डिंमो "पडहयसट्दस उत्तरसई)112 । अन्य स्थलों पर भी डोंब को गाना गाने वाला एवं बांस की टोकरिया बनानेवाला कहा गया है तथा ये घरों में रहते थे113 । डोंब को "पाण" भी कहा गया है।141 पक्कण- कुल- उद्योतन सूरि ने पक्कण-कुल का उल्लेख अधमकुल एवं चाण्डाल कुल के अर्थ में किया है115 | रत्नपुरी में चाण्डालों के घरों पर भी पताका फहराता थी116 | चाण्डालों को म्लेच्छ सदृश कहा गया है1171 "अन्तकृददशा!18“ तथा मनुस्मृति में 119 आदि से ज्ञात होता है कि चाण्डाल मुर्दे ढोते थे। मेरिय वाद्य को बजाने वालों की एक अलग जाति थी। सम्भवत: ये कबूतर भी पालते थे120 1 ___ बोक्कस:-ये धर्म का एक अक्षर भी नहीं जानते थे121 | "सुन्तनिपात122 और अंगुत्तर निकाय123 में इन्हें पुक्कुस कहा गया है। निषाद और अम्बष्ठ के संयोग से उत्पन्न संतान को पुक्कुस कहा गया है124 । उद्योतन सूरि ने शौकरिकों को अनार्य एवं म्लेच्छ कहा है। इन्हें कर्मगुगुप्सि जाति भी कहा गया है125 । ( 37 ) .
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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