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सन्दर्भ और टिप्पणियाँ
1. ऋग्वेद, मंत्र 1, सूक्त 25, मंत्र 30, सूक्त 25 2. छान्दोग्य उपनिषद, 4/1/3 3. जैन, जगदीश चन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृष्ठ 33 । 4. भद्रबाहु, आवश्यक नियुक्ति पृ. 92 । 5. हेमचन्द्र का पाकृत व्याकरण (1.1 की वृत्ति) 6. जगन्नाथ प्रसाद, कहानी का रचना, विधान, पृ. 4-51 7. शास्त्री नेमिचन्द्र, हरिभद्र के पाकृत कथा-साहित्य का आलोचनात्मक परशीलन, पृ. 3 । 8. उपाध्ये, ए. एन. इन्ट्रोक्शन वृहत्कथाकोष, पृ. 18 । 9. वही, पृष्ठ 31 । 10. मूलाचार अ. 5, गाथा 279 । 11. जैन, जगदीशचन्द्र, पूर्वोद्धरित, पृष्ठ-197 12. वही, पृ.-197 13. उपाध्ये, ए. एन. बृहत कथाकोष, तत्रैव विटरनित्स हिस्टरी ऑव इन्डियन लिटरेचर, पृ. 521 । 14. शास्त्री नेमिचन्द्र, पूवोद्धरित, पृ.-40 15. सेसतुंग विचार श्रेणि; प्रद्युम्न. विचा. गा. 532 । 16. हरिभद्रस्य समयनिर्णय:, पृ. 17 । 17. विशविशिका की प्रस्तावना। 18. सिद्धि विनिश्चयटीका की प्र., पृ. 52 । 19. शास्त्री नेमिचन्द्र पूर्वोद्धरित, पृ. 47। 20. समाराइच्चकहा, पृष्ठ 2। 21. दशवैकालिक नियुक्ति पृष्ठ 193-205 । 22. आचार्य हेमचन्द्र काव्यानुशासन (8, 7-8)। 23. साहित्य दर्पण (6. 334-5)
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