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7. धर्म कथा होने पर भी इसमें चोर, विट, वेश्या, धूर्त, कपटी, ठग, लुच्चे और बदमाशों के चरित्र-चित्रण में लेखक को अद्भुत सफलता मिली है।
8.इन कथाओं का प्रभाव मन पर बड़ा गहरा पड़ता है।
9. तरंगति शैली में कृतघ्न कौऔं की कथा, वसन्त तिलका गणिका की कथा, स्वच्छंद चरित वाली वसुदत्ता की कथा एवं विमल सेना की कथा प्रभृति कथायें लिखी गयी हैं। इस कृति में लघु कथायें वृहत्कथाओं के संपुट में कटहल के कोओं की तरह सन्निवद्ध हैं।
__10. लोक कथाओं की अनेक कथानक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है।
11. कथाओं के मध्य में धर्म तत्व नमक की उस चुटकी के समान है जो सारे भोजन को स्वादिष्ट और सुखकर बनाता है।38
कहुप्पत्ति में जबू स्वामि चरित, जंवू और प्रभव का संवाद, कुवेर दन्त चरित, महेश्वर दन्त का आख्यान, वल्कल चीरि प्रसन्न चन्द्र का आख्यान, ब्राह्मण दारक की कथा, आणाढिय देव की उत्पत्ति आदि का वर्णन है। अन्त में वसुदेव चरित्र की उत्पत्ति बताई गयी है। इसके बाद धम्मिल के चरित्र का वर्णन आता है। विवाह होने के पश्चात भी धम्मिल रात्रि के समय पढ़ने-लिखने में निमग्र हो जाता है। उसकी माता को जब यह बात मालुम होती है तो वह पढ़ना-लिखना बंद कर अपने पुत्र का ध्यान नवविवाहिता वधू की ओर आकृष्ट करने के उपाय करती है। परिणाम स्वरूप वह वेश्यागामी हो गया। भगवद् गीता का भी उल्लेख है। आख्यायिका-पुस्तक, में कथा-विज्ञान और व्याख्यान की विशेषज्ञ स्त्रियों के नामों का उल्लेख मिलता है। दूसरे को दुःख देने को अधर्म और सुख देने को धर्म कहा गया है (अहम्मो पर दुक्खस्स कररोण, धम्मों य परस्स सुहप्पयारोणं) यही जैन धर्म की विशेषता बताई गई है। जिसने सभी प्रकार के आरम्भ का त्याग कर दिया है और जो धर्म में दृढ़ है वह श्रमण हैं। शरीर अध्ययन प्रथम लंभक से प्रारम्भ होकर 29 वें लम्भक में समाप्त होता है। सामाविजया नाम के प्रथम लंभक में समुद्र विजय आदि नौ वसुदेवों के पूर्वभवों का उल्लेख हैं। परलोक
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