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________________ जैन कथाएँ श्रमण संस्कृति की पोषक कथाएँ है। अधिकांश कथाएँ निवृत्ति प्रधान हैं। मनुष्य कर्म के प्रभाव के फलस्वरूप विभिन्न योनियों में अनंत काल तक भ्रमण करता है। धन-धान्य तथा बन्धु बान्धव उसकी रक्षा नहीं कर सकते हैं। सांसारिक विषय भोगों से तृष्णा के कारण उसकी तृप्ति नहीं होती है। कर्मभार से प्रेरित होकर उस में शोक व्याप्त होता है। आत्म दमन करने अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण करने और संसार के माया मोह का त्याग करने से शाश्वत और अनुपमेय निर्वाण सुख की प्राप्ति हो सकती है। कहानियों के माध्यम से संसार की निस्सारता संदेश जन सामान्य तक पहुँचाने की चेष्टा की गई है। जैन कहानियों में अहिंसा, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य कर्मसिद्धान्त आदि को मुख्यत: प्रतिपादित किया गया है। कतिपय कहानियों में यज्ञ याग में होने वाली हिंसा की निन्दा करके अहिंसा का प्रतिपादन कथाओं के माध्यम से किया गया है, संक्षेप में जैन धर्म का उपदेश कहा साहित्य का प्रमुख अंग है। जिन मूर्तियों का दर्शन, पूजा, साधुवंदन स्वाध्याय, जीव दया तथा संसार की अनित्यता युक्त कहानियाँ मिलती हैं। धार्मिक जगत का वैविध्यपूर्ण चित्रण जैन कथा साहित्य में किया गया है। शैव धर्म के कापालिक, महा भैरव, आत्मवधिक गुग्गल धारक, कारूणिक आदि सम्प्रदाय, अर्धनारीश्वर महाकाल, शशिशेखर रूप शिव तथा रूद्र, स्कन्द, गजेन्द्र विनायक आदि कात्यायनी और कोट्टजा देवियाँ शैवों द्वारा पूजित थी। धार्मिक मठों में अनेक देवताओं की पूजा-अर्चना एक साथ होती थी। पौराणिक धर्म अधिक उभर रहा था। विनयवादी, ईश्वर वादी विचारकों के अतिरिक्त तीर्थ बन्दना के समर्थकों की संख्या बढ़ रही थी। गंगा स्नान एवं पुष्कयात्रा पुण्यार्जन का साधन होने से प्रायश्चित के प्रमुख केन्द्र माने जाते थे। वैष्णव धर्म में भक्ति की प्रधानता थी। गोविन्द, नारायण, लक्ष्मी इस धर्म के प्रमुख देवता थे। ब्रहमा की स्थिति गौण हो चली थी। (208)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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