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________________ 100. तत्रैव 31.19 101. तत्रैव 96.29 102. मंजोएसु महुर-पलावे जंत-सउण्ए 83.6 103. कुवलयमाला 94.31 104. कुवलयमाला 8.10 105. तत्रैव 50.11 106. द्रष्टव्य अ. का. सां अ. पृ. 215 107. कुवलयमाला 8.28 108. यश., सं. 530 109. संमरांगणसुत्रधार 31.117.142 110. कुमारपाल चरित्र 4.26 111. द्रष्टव्य, अ. का सां अ., पृ. 215 112. समरांगण सूत्रधार 31.163, 113. कुवलयमाला 94.31 114. लॉ, बी. सी. इडियां ऐज ग्स्क्राइब्ड इन अर्ली टेक्स्ट्स ऑव Budhism and Jainism, London, 1941, पृ. 139 तथा आगे । 115. अग्रवाल, वी. एस., भारतीय कला, वाराणसी, 1977, द्वि संरक्षक, पृ. 187-95; 116. स्मिथ, बी. ए., दि जैन स्तूप एण्ड अदर एन्टीक्वटीज़ ऑव मथुरा, दिल्ली, 1969, पुनर्मुद्रित संस्करण, पृ. 1-6 । 117. शिवराममूर्ति, सी; पैनोरमा ऑव जैन आर्ट, नई दिल्ली, 1983, पृ. 35, चि. सं. 35 118. ब्राडन, पार्टी, इण्डियन आर्कीटेक्चर, बम्बई, 1959 (भारतीय संस्करण), पृ. 63 1 119. वही, पृ. 53 । 120. वही, पृ. 75 । 121. वही, पृ. 75 । 122. ब्राउन, पर्सी, पूर्वोदृत, पृ. 75 1 123. शिवराम मूर्ति, सी, पूर्वोद्धृत, पृ. 14, चि 6, पृ. 184,209, चि. 299, चि. 302, पृ. 329, चि. 511; द. भारत के बहुसंख्यक जैन मंदिर एवं मूर्तियों के सुन्दर चित्रों के लिए यह पुस्रक दृष्टव्य है । 124. कृष्णदेव, टेम्पल्स ऑव खुजराहो, खण्ड 1, नई दिल्ली, 1990, पृ. 250) खण्ड 2, चि. 114 | 125. वही, पृ. 11 । 126. कृष्ण देव, प्रवोक्ति, पृ. 210 तथा आगे, खण्ड 2, चि. 93-951 ( 200 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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