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अत्रैव कामदेवस्य रतेश्च प्रतिमों व्याघात् । जिनागारे समायाता: प्रजाया: कौतुकाय स: ॥ कामदेव रतिप्रेक्षाकौतुकेन जगज्जनाः। जिनायतनमागत्य प्रेक्षय तत्प्रतिमादृयम ।। संविधान कमा कर्ण्य तद्भद्क मृगध्वजम बहवः प्रतिपद्यन्ते जिन धर्म महद्धिकम ।। प्रसिद्धं च गृह जैन कामदेवगृहाख्याया। कौतुकागतलोकस्य जातं जिनमाताप्तये ।।- हरिवंश पुराण 29.15 (हरिवंश पुराण) सं. पन्नालाल जैन, ज्ञान पीट
मूर्तिदेवी जैन ग्रंथ माला, संस्कृत ग्रंथांक 27) 51. हरिवंश पुराण 29.9.10 52. कुवलयमाला 7.18 53. तत्रैव 31.22, 103, 4, 140, 2 54. तत्रैव 199.30 55. तत्रैव 7.16 56. तत्रैव 7.15 57. तत्रैव 31.19 58. तत्रैव 92.25 59. तत्रैव 97.7 60. तत्रैव 7.17 61. तत्रैव 96.33 62. तत्रैव 97.15 63. तत्रैव 97.2 64. तत्रैव 25.7 65. द्रष्टव्य, अ-का. सां अ., पृ. 92 66. कुवलयमाला 25.8.9 67. तत्रैव 25.8 68. कुवलयमाला 73.8 69. तत्रैव 783.7 70. तत्रैव 238.7
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