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भाषाओं के अध्ययन में ही नहीं हैं, वरन् ये भारतीय सभ्यता के इतिहास पर भी प्रकाश डालती
कथा ग्रंथो का संक्षिप्त परिचय जैन प्राकृत कथा साहित्य में वर्णित महत्वपूर्ण कथा कृतियों का संक्षिप्त परिचय निम्न
तरंगवती कथा:-पदलिप्त सूरि सर्व प्रथम जैन विद्वान हुये जिन्होंने तरंगवती कथा ग्रंथ की रचना की। प्राकृत कथा-साहित्य की यह रचना सबसे प्राचीन है। तरंगवइकार के रूप में इसके कर्ता का विवरण अनुयोग द्वार सूत्र (130) में प्राप्त होता है। निशीथ की विशेष चूर्णि में लोकोन्तर धर्म कथाओं में तरंगवती के साथ मलयवती और मगधसेना के नामों के वर्णन है। इस समय यह कथा ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। यत्र-तत्र इसके जो उल्लेख या तरंगलीला नाम का जो संक्षिप्त रूप उपलब्ध है। विशेषाश्यक भाष्य में इसका उल्लेख इस प्रकार है:
जहवा निदिट्ठवसा वासव दन्ता तरंगवाइयाई29 |
दशवैकालिक चूर्णि (3, पृ. 109) और जिनभद्र-गणि क्षमाश्रमण के विशेषावश्यक भाष्य (गाथा 1508) में तरंगवती का उल्लेख प्राप्त होता है। जिन दासगणि ने दशवैकालिक चूर्णि में धर्मकथा के रूप में तरंगवती को निर्देश दिया है।
वासुदेव हिण्डी वासुदेव हिण्डी में कृष्ण के पिता वासुदेव के भ्रमण का वृन्तान्त है, इसलिये, इसे वासुदेव-चरित नाम से भी कहा गया।
आगम बाह्य ग्रन्थों में यह कृति कथा साहित्य में प्राचीनतम गिनी जाती है। वासुदेव हिण्डी का भारतीय कथा साहित्य में ही नहीं, बल्कि विश्व कथा साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान
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