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उपपदार्थ है; क्यो कि उनसे कोई अर्थ-क्रिया सिद्ध नहीं होती है वे केवल शब्दव्यवहार के ही
उपयोगी है।
द्रव्य नौ हैं-पृथिव्यापस्तेजोवायुशकाशं कालो दिगात्मा मन इति द्रव्याणि । पृर्थी, जल, अग्नि, वायु आकाश, काल दिशा, आत्मा और मन-ये नौ द्रव्य हैं। गुण चौबीस हैं रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथ्क्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, शब्द, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार ।
__ न्याय दर्शन:-न्याय सूत्र के रचयिता का नाम गौतम या गोतम है और व्यक्ति नाम अक्षवाद है। प्रमाणों से अर्थ का परीक्षण अर्थात विभिन्न प्रनागों की सहायता से वस्तुतत्व की परीक्षा न्याय है।
प्रत्यक्ष और आगम के आश्रित अनुमान (न्याय) है। अनुमान में परीक्षा करके अर्थ की सिद्धि की जाती है। परीक्षा प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से होती है जैसे अग्नि की सिद्धि में जब यह प्रतिज्ञा की कि ‘पर्वत में अग्नि है' तो यह शब्द प्रमाण हुआ, जब रसोई का उदाहरण दिया तो यह प्रत्यक्ष प्रमाण हुआ; जब जैसे रसोई धूमवाली है वैसे यह पर्वत धूमवाला है ऐसा उपनयन कहा, तो यह उपनाम हुआ। इस प्रकार प्रत्यक्ष, उपनाम और शब्द, इन सब प्रमाणों से परीक्षा करके अग्निकी सिद्धि की गयी। इस प्रकार समस्त प्रमाणों के व्यापार से परीक्षा करके अग्नि सिद्धि की गयी। इस प्रकार समस्त प्रमाणों के व्यापार से अर्थ का निश्चय करना न्याय है।
न्यायसूत्र पाँच अध्यायों में विभक्त हैं और प्रत्येक अध्याय दो आह्रिकों में। इनमें षोड़श पदार्थो के उद्देश्य (नाम कथन) तथा लक्षण (परिभाषा) परीक्षण किये गये हैं।
प्रमाणप्रमेयसंयूमप्रयोजनदृष्टाः तसिद्धान्ताव्यवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डा, हेत्वामास छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्वज्ञानान्नि: श्रेयसाधिगम: ++4
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