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सभी देवों में क्षेष्ठ माने जाते हैं और इन तीनों में विष्णु का स्थान श्रेष्ठतम है ऋग्वेद में विष्णु की महिमा, मराक्रम एवं पूजा आदि का विस्त०त वर्णन किया गया है ।256 एक स्थान पर विष्णु को बृहत् शरीर एवं युवा रूप में युद्ध में जाते हुए उल्लिखित किया गया है ।257 विष्णु के प्रसिद्ध दस अवतार माने गये हैं, यथा-मत्स्य, कूर्म, बाराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण बुद्ध एवं कल्कि ।258 महाभारत के शांति पर्व में विष्णु के दस अवतारों का उल्लेख है,259 परन्तु वहाँ 'बुद्ध' की जगह हंस तथा कृष्ण के स्थान पर ‘सात्वत्' का नाम आया है। विष्णुधर्मोत्तर पुराण में 'विष्णुरोच' कह कर विष्णु की पूज किये जाते का संकेत प्राप्त होता है ।260 इन्हें चतुर्भूज देवता के रूप में पूजे जाने का उल्लेख है। उनके एक हाथ में शंख, दूसरे में चक्र, तीसरे हाथ में गदा तथा चौथे हाथ में पद्यम् लिय हुए मूर्तियों में दिखाया गया है ।261 वासुदेव, जो कि वैदिक देवता विष्णु के अवतार माने जाते थे तथा दूसरे जिन्हें नारायण के रूप में भी जाना जाने लगा था, की पूजा का प्रचलन पाणिनि के समय से ही प्रारम्भ हो गया था।262 तैत्तिरीय आरण्यक में भी नाराण, वासुदेव और विष्णु को एक ही देवता के रूप में स्वीकर किया गया हैं ।263 नारायण को हरि तथा अनन्त एवं सर्वशक्तिशाली देवता के रूप में स्वीकर किया गया है ।264
शिव:-कुवलयमाला में शिव के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन प्राप्त होना है। शशिशेखर (जिसके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित है), की आराधना आत्ममांस के समर्पण के द्वारा की जाती थी, जिसमें प्राण-संशय बना रहता था ।265 सिर पर चन्द्रधारी शिव की मूर्तियों से उद्योतन के इस वर्णन की पुष्टि हो जाती है। शिव को विभिन्न प्रसंगों में उद्योतन ने त्रिनयन, हर, धवलदेह एवं शंकर नाम से सम्बोधित किया है, कुमार कुवलयचन्द्र के अंगो की उपमा त्रिनयन से दी गयी है, किन्तु कुमार त्रिनयन जैसा नहीं हो सकता क्योंकि यवती के शरीर से युक्त उसका वामांग हीन नहीं हैं ।266 शिव के त्रिनेत्र एवं अर्धनारीश्वर रूप का स्पष्ट उल्लेख है। शिव का त्रिनेत्र एवं अर्धनारीश्वर रूप साहित्य एवं कला में सुविदित है। आर. सी. अग्रवाल ने राजस्थान के आबानेरी, ओसिया एवं मेनाल की अर्धनारीशवर मूर्तियों का सुन्दर वर्णन किया
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