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वासुदेवहिण्डी (प्र. ख.) से जो साक्ष्य प्राप्त होता है उसके अनुसार निम्नलिखित धार्मिक कृत्य वासदेव द्वारा इस राजसूय यज्ञ में किये गए।39
यज्ञ में चिति (यज्ञवेदी) के निर्माण का महत्वपूर्ण स्थान था। इसके निर्माण में एक विशेष प्रकार की मिट्टी से बनी हुई ईटों का प्रयोग होता था। कीचड़ से भरे हुये गड्ढे में बहुत से मरे हुए जानवरों को फेंक दिया गया। जब मरे हुए जानवरों का माँस सड़ कर मिट्टी में सम्मिलित हो गया तब हड्डियों को निकाल कर बाहर फेंक दिया गया। इस मिट्टी से ईटों का निर्माण हुआ। सागर स्नान कर यज्ञबलि के लिये उपस्थित हुए। ईटों के ऊपर घी और मधु का छिड़काव किया गया। इसके पश्चात अंगूठे के बल पर खड़े हुये आदमी की ऊंचाई के बराबर चिति का निर्माण हुआ। यह यज्ञ गंगा और यमुना के तट पर सम्पन्न हुआ। उन्चास दिनों तक यज्ञ में बकरे, अश्व और आदमियों की आहुति दी गयी। अश्वमेघ यज्ञ का भी संदर्भ वासुदेवहिण्डी (प्र.ख) से प्राप्त होता है। इस यज्ञ में राज पुरोहित विश्वभूति द्वारा बहुत से पशुओं की बलि यज्ञ में दी गयी थी।
सन्यास लेने के कारण-वासुदेवहिण्डी के अनुसार एक गृहस्थ अस्थायी रूप से गृह त्याग कर तपस्या का अभ्यास करके सन्यास ग्रहण करने की अवस्था प्राप्त कर सकता था।40 सांसारिक इच्छाओं से तृप्त हो जाने के पश्चात, प्रौढ़ावस्था प्राप्त करने पर वह तपस्वी-जीवन स्वीकार करता था।1 परन्तु कुछ राजकुमारियों के उदहरण प्राप्त होते हैं जो युवावस्था में माता-पिता से अनुमति प्राप्त कर सन्यासिन हो जाती थी। “इक्षवाकु वंश की सभी राजकुमारियों ने गृहस्थ आश्रम को त्यागकर सन्यास ग्रहर कर लिया था।42 परन्तु ऐसा हर पिरवार के साथ नहीं होता था।+3 कुछ उदाहरण ऐसे भी प्राप्त होते है जब तीत्थयार के प्रवचन को सुनकर मन आन्दोलित हो जाता था तथा परिणामस्वरूप सन्यास ग्रहण करने का कारण बन जाता था। कभी-कभी अचानक संसार की क्षण भंगुरता का विचार चित्त में आ जाने पर त्याग के भाव उत्पन्न हो जाते थे। कभी-कभी प्रेम या वैवाहिक जीवन में नैराश्य या पत्नी की मृत्यु हो जाने
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