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________________ अजैनों को जैन दीना से प्रगट है कि उस समय 'नृतक' लोग तक जैनमन्दिर और जैन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाते थे। (२१) वनयश नामक मुनि पण-स्कैथियन थे। पणिक मुनि भी इसी जाति के होना संभव है। (२२) भारत के मूल निवासी गौड़ और द्रविड़ जातियों में भी जैनधर्म का प्रचार हुवा था, इनमें की असभ्य जातियां शुद्ध करके जैन वनाली गई थीं। भार लोग जो पहले पहाड़ों में रहते थे और मांस भक्षी थे वह भी जैनधर्म में दीक्षित किये गये थे, (ऑन दी ओरिजिनल इन्डैबीटेन्टस आफ भारतवर्ष. पृ० ४७) एक समय यह लोग बुन्देलखण्ड के राज्याधिकारी होगये थे। (२३). वल्लुवर नामक जाति भी जैन धर्मानुयायी थी। प्रसिद्ध तामिल ग्रंथ "कुरल" के कर्ता वल्लुवर जाति के थे और जैन थे। ये जातिवाह्य समझे जाते थे। . (२४) कुरुम्ब लोग भारत के बहुत प्राचीन असभ्य हैं। यह पहले जंगलों में मारे मारे फिरते थे । और हिरण आदि का शिकार करके अपना पेट भरा करते थे। फिर ये ग्रामों में वसने लगे और खेती करने लगे । परन्तु इनका मुख्य कर्म भेड़ों को चराना रहा है। आज भी अधिकांश कुरुम्ब गड़रिया ही है । पहिले इनका कोई धर्म नहीं था । एक जैन मुनि ने उन सबको जैन बना लिया था। इनका मुख्य नगर 'पुलाल' था । और इनने अपना एक राजा भी चुन लिया था। इस राजा ने एक जैनमुनिकी स्मृति में एक 'जैन वस्ती' (जैनमन्दिर) भी पुलाल में बनवाया था। जो भाजभी वहां ध्वंशावशेष मौजूद है । इसके अतिरिक्त औरभी कई जैन मन्दिर वहां मौजूद हैं । यह पुलाल मदरास से करीब ८ मील की दूरी पर है। अभी भी कुछ कुशम्ब जैन मौजूद हैं।
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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