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जनधर्म की उदारता
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१-सम्राट चन्द्रगुप्तने ग्रीक देशके (म्लेच्छ) राजा सैल्यूकस की कन्यासे विवाह किया था । और फिर भद्रबाहु स्वामीके निकट दिगम्बर मुनिदीक्षा लेली थी।
२-आबू मन्दिरके निर्माता तेजपाल प्राग्वाट (पोरवाल ) जाति के थे, और उनकी पत्नी मोद जाति की थी। फिर भी वे बड़े धर्मात्मा थे। २१ हजार श्वेताम्बरों और ३ सौ दिगम्बरों ने मिलकर उन्हें 'संघपति' पदसे विभूपित किया था। यह संवत् १२२० की बात है। तेजपालकी विजातीय पत्नी थी, फिर भी वह धर्मपत्नीके पदपर आरुढ़ थी । इस सम्बन्ध में आवूके जैन मन्दिरमें सम्बत् १२६७ का जो शिलालेख मिला है वह इस प्रकार है:- . . " सम्बत् १२६७ वर्षे वैशाखसुदी १४ गुरौ प्राग्वाटज्ञातीया चंड प्रचंड प्रसाद मह श्री सोमान्वये महं श्री असराज सुत महं श्री तेजपालने श्रीमत्पत्तनवास्तव्य मोढ़ ज्ञातीय ठ० आल्हणसुत ठ० आससुतायाः ठकराज्ञीसंतोपाकुक्षिसंभूतायाः महं श्रीतेजपाल द्वितीय भार्या मह श्रीसुहडादेव्याः श्रेयार्थ ॥"
यह आजसे ७०० वर्ष पूर्व एक सुप्रसिद्ध महापुरुप द्वारा किये गये अन्तर्जातीय (पोरवाड़+मोढ़) विवाहका उदाहरण है।
३-मथुराके एक प्रतिमा लेखसे विदित है कि उसके प्रतिष्ठाकारक वैश्यथे। और उनकी धर्मपत्नी क्षत्रिया थी।
४-जोधपुरके पास घटियाला प्रामसे सम्बत् ६१८ का एक शिलालेख मिला है। इसमें कक्कुक नामक व्यक्तिके जैन मन्दिर, स्तम्भादि बनवानेका उल्लेख है । यह कक्कुक उसवंशका था जिस के पूर्व पुरुष ब्राह्मण थे और जिन्होंने क्षत्रिय कन्यासे शादी की थी।
(प्राचीन जैन लेख संग्रह) - पद्मावती पुरवालों (वैश्यों) का पांडों (ब्राह्मणों) के