________________
-.
-'
जैन धर्म को उदारता ___ अर्थात्-वह कार्तिकेय भक्तिपूर्वक मुनिराज को नमस्कार करके स्वर्गदायी दीक्षा को लेकर जिनेन्द्रोक्त सप्ततत्वों के ज्ञाता मुनि होगये। - इस प्रकार एक व्यभिचारजात या आज कल के शब्दों में दस्सा या विनकावार व्यक्ति का मुनि हो जाना जैनधर्म की उदारता का वलन्त प्रमाण है । वह मुनि भी साधारण नहीं किन्तु उद्गट विद्वान और अनेक ग्रन्थों के रचयिता हुये हैं जिन्हें सारी जैन समाज बड़े गौरव के साथ आज भी भक्तिपूर्वक नमस्कार करती है। मगर दुःख का विषय है कि जाति मद में मत्त होकर जैनसमाज अपने उदार धर्म को भूली हुई है और अपने हजारों भाई बहनों को अपमानित करके उन्हें विनकावार या दस्सा बनाकर सदा के ' लिये मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देती है। वर्तमान जैन समाज का कर्तव्य है कि वह स्वामी कार्तिकेय की कथा से कुछ वोधपाठ लेवे और जैनधर्मकी उदारता का उपयोग करे । कभी किसी कारण से पतित हुये व्यक्ति को या उसकी सन्तान को सदा. के लिये धर्म का अनधिकारी बना देना घोर पाप है।
भावी संतानको दूपित नामानकर उसी दोपी व्यक्ति को पुनः शुद्ध कर लेने वायत्त जिनसेनाचार्य ने इस प्रकार सष्ट कथन किया है
कुतश्चित् कारणास्य कुलं समाप्तदूपणं । सोऽपि राजादिसम्मत्या शोधयेत् स्वं यदा कुलम् ॥१६८ तदास्योपनयाहत्वं पुत्रपौत्रादिसंततौ । न निषिद्धं हि दीक्षा कुले चेदस्य पूर्वजाः ॥ १६६
आदिपुराण पर्व ॥ अर्थ-यदि किसी कारण से किसी के कुल में कोई दृपण लग जाय तो बह राजादिकी सम्मतिसे अपने कुलको जर शुद्ध करलेता