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जाति भेद का आधार आचरण पर है
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उन्हें पवित्र बनाकर अपने आसन पर बिठायगा और जैनधर्म की उदारता को जगत में व्याप्त करने का प्रयत्न करेगा । खेद है कि भगवान महावीर स्वामी ने जिस वर्ण भेद और जाति मद को चकनाचूर करके धर्म का प्रकाश किया था, उन्हीं महावीर स्वामी अनुयायी आज उसी जाति मद को पुष्ट कर रहे हैं । जाति भेद का आधार प्राचरण पर है ।
ढाई हजार वर्ष पूर्व जब लोग जाति मद में मत्त होकर मन हे थे और मात्र ब्राह्मण ही अपने को धर्माधिकारी मान बैठे थे तब भगवान् महावीर स्वामी ने अपने दिव्योपदेश द्वारा जाति मूढ़ता जनता में से निकाल दी थी और तमाम वर्ण एवं जातियों को धर्म धारण करने का समानाधिकारी घोषित किया था । यही कारण है कि स्व० लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सच्चे हृदय से यह शब्द प्रगट किये थे कि—
"ब्राह्मणधर्म में एक त्रुटि यह थी कि चारों वर्णो अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को समानाधिकार प्राप्त नहीं थे । यज्ञं यागादिक कर्म केवल ब्राह्मण ही करते थे । क्षत्रिय और वैश्यों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था । और शूद्र विचारे तो ऐसे बहुत विपयों में अभागे थे । जैनधर्म ने इस त्रुटि को भी पूर्ण किया है ।" इत्यादि ।
इसमें कोई सन्देह नहीं जैनधर्म ने महान अधम से अधम और पतित से पतित शूद्र कहलाने वाले मनुष्यों को उस समय अपनाया था जब कि ब्राह्मण जाति उनके साथ पशु तुल्य ही नहीं किन्तु इससे भी अधम व्यवहार करती थी। जैनधर्म का दावा है कि घोर पापी से पापी या अधम नीच कहा जानेवाला व्यक्ति जैन धर्म की शरण लेकर निष्पाप और उच्च हो सकता है । यथा---