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________________ सम्मतियां mM 'उदारता पर शुभ सम्मतियां। जैनधर्म की उदारता' प्राचार्यो, मुनियों, त्यागियों, पण्डितों, वाबुओं और सर्वसाधारण सज्जनों को कितनी प्रिय मालूम हुई है वह नीचे प्रगट की गई कुछ सम्मतियों से स्पष्ट प्रतीत हो जायगा। दूसरे इस पुस्तक की लोकप्रियता का यह प्रबल प्रमाण है कि इसकी हिन्दी में द्वितीयावृत्ति अल्प समयमें ही निकालनी पड़ी है। दिगम्बर जैन युवक संघ सूरतने इसका गुजराती अनुवाद भी प्रगट किया है तथा श्रीधर दादा धारते सांगली ने इसे मराठी भाषा में प्रगट किया है । इस प्रकार तीन भाषाओं में प्रगट होने का अवसर इसी पुस्तक को प्राप्त हुआ है। 'उदारता' पर अनेक सम्मतियां प्राप्त हुई हैं। उनमें से कुछ सम्मतियों का मात्र सार यहां प्रगट किया जाता है। (१) दिगम्बर जैनाचार्य श्री. सूर्यसागरजी महाराज जैनधर्म की उदारता लिखकर पं० परमेष्ठीदासजी ने समाज . का बहुत ही उपकार किया है । वास्तव में ऐसी पुस्तकों का समाज १ में अभाव सा प्रतीत होता है। लेखक ने इस कमी को दूर कर सिद्धान्तानुसार जैनधर्म की उदारता प्रगट की है। विद्वान् लेखक का यह प्रयास श्रेयस्कर है । आपकी इस कृति से हम प्रसन्न हैं। (२) त्यागमूर्ति वावा भागीरथजी वणी पुस्तक पढ़ी। मैं तो इतनाही कहता हूं कि इसका अनेक भाषाओं में अनुवाद करके लाखों की संख्या में प्रचार किया जाय । ताकि जैनधर्म के विपय में संकीर्ण भाव मिटकर उदार भावना प्रगट हो। (३) धर्मरत्न पं० दीपचन्दजी वर्णी बाबाजी की इस सम्मति से मैं भी पूर्ण सम्मत हूं। (२) धर्मरमसंकीर्ण भान प्रचार किया भाषाओं
SR No.010259
Book TitleJain Dharm ki Udarta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherJohrimal Jain Saraf
Publication Year1936
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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