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उपसहार
७ आप नहीं छूना चाहते मत छुओ । मगर मन्दिर के आगे मानस्तंभ रखो वह उनकी पूजा करेंगे।" इत्यादि । ___ यदि इसी प्रकार के उदार विचार हमारे सब साधुओं के हो जावे तो धर्म का उद्धार और समाज का कल्याण होने में विलम्ब । न रहे ! मगर खेद है कि कुछ स्वार्थी एवं संकुचित दृष्टि वाले पण्डितमन्यों की चुंगल में फंस कर हमारा मुनि संघ भी जैनधर्म की उदारता को भूल रहा है।
अब तो इस समय सम्बा काम युवकों के लिये है। यदि वे जागृत होजावे और अपना कर्तव्य समझने लगें तो भारत में फिर वही उदार जैनधर्म फैल जावे। ____ उत्साही युवको! अव जागृत होओ, संगठन वनाओ, धर्म को पहिचानो और वह काम कर दिखाओ जिन्हें भगवान अकलंकादि महापुरुषों ने किया था। इसके लिये स्वार्थ त्याग करना होगा, पचायतों का झूठा भय छोड़ना होगा, वहिष्कार की तोप को अपनी छाती पर दगवाना होगा और अनेक प्रकार से अपमानित होना होगा। जो भाई बहिन तनिक तनिक से अपराधों के कारण जाति पतित किये गये हैं उन्हें शुद्ध करके अपने गले लगाओ, जो दीन हीन पतित जातियां हैं उन्हें सुसंस्कारित कर के जैनधर्मी बनाओ, स्त्रियों और शूद्रों के अधिकार उन्हें विना मांगे प्रदान करो तथा समझाओ कि तुम्हारा क्या कर्तव्य है । अन्तर्जातीय विवाह का प्रचार करो और प्रतिज्ञा करो कि हम सजातीय कन्या मिलने पर भी विजातीय विवाह करेंगे। जैनधर्म के उदार सिद्धान्तों का जगत में प्रचार करो और स्व को वतादो कि जैनधर्म जैसी उदारता किसी भी धर्म में नहीं है । यदि हमारा युवक समुदाय साहस पूर्वक कार्य प्रारम्भ करदे तो मुझे विश्वास है कि उसके साथ सारी समाज चलने को तैयार हो जायंगी। और वह दिन भी दूर नहीं