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गुणयत और शिक्षामत और भी मतभेद हो जो अभीतक अपनेको मालूम नहीं
आचार्योमें
__ इस तरह आचार्योके शासनभेद-हारसे यह अणुव्रतोंकी संख्या
आदिका पुन्छ विवेचन किया गया है । अणुव्रतोंके स्वरूप-विषयक विशेष भेदको रि किती समय दिखलानेका यत्न किया जायगा.।
गुणव्रत और शिक्षाव्रत
सैनधर्ममें, अणुनोंक पश्चात् , श्रावकके बारह व्रतोंमें तीन गुणों
और चार शिक्षामतोंका विधान पाया जाता है । इन सातों व्रतोंको सप्त शीलवत भी कहते हैं। गुणवतॉसे अभिप्राय उन व्रतोंका है जो मणुगलोंक गुणार्थ अर्थात् उपकारके लिये नियत किये गये हैं-भावनामृत हैं-अपवा जिनके द्वारा अणुव्रतोंकी वृद्धि तथा पुष्टि होती है। और शिक्षामता उन्हें कहते है जिनका मुख्य प्रयोजन शिक्षा अर्थात् अभ्यास है-जी शिक्षा स्थानक तथा अभ्यासके विषय है-अथवा शिक्षाशी-विद्योपादानकी-जिनमें प्रधानता है और जो विशिष्ट श्रुतमानभावनाप्ती परिणतिद्वारा निर्वाह किये जानेके योग्य होते हैं । इनमें गुणग्रत प्रायः यावजीविक कहलाते हैं; अर्थात् , उनके धारणका नियम प्रायः जीवनभरके लिये होता है-वे प्रतिसमय पालन किये जाते हैं
और शिक्षावत यावजीविक न होकर प्रतिदिन तथा नियत दिवसादिकके विभागसे अभ्यसनीय होते हैं-उनका अभ्यास प्रतिसमय नहीं हुआ करता, उन्हें परिमितकालभावित समझना चाहिये । यही सब इन दोनों