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(८) तृष्णा वश तें न ढोयो कुटुंब को भाररे॥ अव०२॥ लोक लाजतं बहु अघ कोने निस फल दुम्ब करनाररे । अब० ॥ मानिक अजहूं हठ तजि सुलटो हाउ भवोदधि पाररे । अब० ॥
११० पद-होगी नारी । धन्य घडी धनि भाग्य हमागे पायी दरश प्रभू यारो ॥ टेक ॥ दरश देखि भ्रम निमिर पलानो सुख वारिधि विस्तारा ॥ धन्य० १॥ नन सफल भये शांनि छत्री ल. खि परम मोद निरधारी ॥ धन्य०२॥ मानिक प्रभु के चरण कमल पर नन मन धन परिबारी ॥ धन्य०३॥
१११ पद-गग गी नया पहा में । जिय नेरी बड़ी भूलरे जिय नेरी बढी भूल ॥टेक। कीड़ी एक कमाई नाही वाचन है निज मूल रे ॥ जिय० १॥ नारण तरण