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(३) १॥ इष्ट अनिष्ट हेतु पर को लखि हर्प विषाद जुठाने रे ॥ मद० २॥ या प्रसंग निन दुखी होन है दुद को मुख करि जाने रे एम० ३ ॥ मम तजि निज परणति भज मानिक सुननि सुनीख बखानेरे ॥ मद०॥ _____८२ पर-योगी दीपचंकी निगा पिता
सबड पिया आये हमारी आरी चेतन कुमति कुनारि त्यागि के ॥ टेक ॥ काल लविध यह ऋतु वसंन में आनंद ठाठ रचौरी। चेत० १॥ मिथ्या कुरंग निकारि सार दृग केसर रंग छिर कोरी । सम्यक ज्ञान अमल घर चारित चावा अंग चरचौरी ॥ चेन०२॥ स्खक्रया नाद अलापन स्वर भरि स्यात् पद मुरज सजागे॥ आज वियोग मनि मो. तिन के हमरो मन हरग्बोर्ग ॥ चेन ॥ धन्य दिवस निज पति संग मानिक सुमति