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(६४) लप उपयोग ॥ शांति०३ ॥ जे शिव मारग मांहि रमत विधि फल तें हरप न सोग। मानिक तिनकोसंगकरत मिटि जातभ्रमण भवरोग ॥ शांति०४॥
____७२ पद- राग देश ठुमरी ॥ ज्ञानी तेनें परसें प्रीति लगाई॥टेक ॥ तूंचिदघन पर जड़ से रावो चित में नां. हिं लजाई॥ ज्ञानी० १॥ पर की प्रीति रीति विपता की छिन में मिलि बिछुराई । पर को तो कछु दोष न ज्ञानी तो परणति दुखदाई॥ ज्ञानी० २॥ भ्रम मद छाकि थापि निज पर में अहंबुद्धि उपजाई । सववन में वहु कष्ट सहेतें सो सुधि क्यों बिसराई। ज्ञानी०३॥ निज स्वभाव तजि बहु दुख पायो मानिक मन बचकाई। पर की प्रीति तजो सुभ जो निज सत गुरु यो फरमाई ॥ ज्ञानी०४॥