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सुहाय ॥ उम० १॥ वालापन ख्यालनि में खोया तरुन विपय विष खाय । विरधापन तरु पत्र जानि यम पवन लगत झरिजाय ॥ उम० २॥ दुर्लभ नर भव पाइ नाहि शठ कुगुरुनि सेइ गमार । काग उड़ावन डारि उदधिमणि फिर पीछे पछताय ॥ उम०३॥ वनि आवे तो कर उयाय यह औसर फिर न लहाय । सैलो शुद्ध सेय मानिक जालं अविनाशी पदपाय ॥ उम०४ ॥
३ पद-राग टप्यो अंगाला ॥ सुज्ञानीरा कुगुरोंदीनीरे मन जायटेक। पंच पापकरि मलिन रहित नित विषय क. पाय सुभायरे ॥ सुज्ञानी० १॥ तिनि प्रसंग चहुंगति भटकायो दुखपायो अधिकायरे॥ सुज्ञानी०२॥ ये पाथर का नात्र प्रगट है मूढ़न लेत डुबाय रे ॥ सुज्ञानो० ३॥