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णति छुटकोस्या। ऐसी दशा होय मानिक 'कव जीवन मुक्ति कहास्या ॥ कव०३॥ __.२८ पद-राग ईमन धीनातिताले में ॥
प्रभु जी हम ने अघ बहु कीने ॥ टेक॥ पंच पाप में मगन रहत नित विषय भोग चित दीने ॥ प्रभ०१॥पर मेंइष्टानिष्ट ठानि के रागद्वेष रसभीने । आर्तरुद्र दुर्ध्यान धारिकें नर्क बसेरे लीने ॥ प्रभु० २ ॥ अधम उधारक शिव सुखकारक सुनियत यश प्रा. चीने। बीतराग लखि जांचत मानिक सम्यक् रत्न सुतीने ॥ प्रभु०३॥
२० पद-राग रेखता ॥ जिय काल घटा देह सदन छावने लगी। छावने लगी जो ये डरावने लगी । जिय० ॥टेका यह विरधापन प.वस भ्रम बदरा उठे जोर । अहे दूसरे उर तृष्णा पवन चलति है चहुं ओर ॥ त्रय योग चपल चपला