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(२) नय प्रमाण निक्षेपकरण के सब विकलप छुटकावे । दरशन ज्ञान चरण मय चेतन भेद रहित ठहरावे ॥ जवे. ४॥ शुक्र ध्यान धरि घाति घाति करि केवल जाति जगावे । तीनकाल के सकलज्ञेय युत् गुन पर्यय झलकोवे ॥ जवे०५॥ या क्रमसों वड़भाग्य भव्य शिब गये जाहिं पुनि जावे । जयवंतो जिन वृप जग मानिक सुग्नर मुनि यश गावे ॥ जवे० ॥
२७ पद-राग मोरठ ॥ ___ कब निज आतम के गुण गास्या । जासू
फेरि नहीं दुख पास्या ॥टेक ॥ कब गृहवास । छांड़िवन से निज अनुभूति लखास्या ।।
कत्र० १॥ कब थिर योग धारि एकासन नेकन चित्त चलास्या । कब मैं ध्यान चमू सजिकरिवल मोहारातिभगास्या ॥ कव०२॥ भेद ज्ञान करि निज में निज धरि पर पर