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( २४ ) सातो० ॥६॥ [पर स्त्री] महा पापजरु नारि पराई रमें सुक्ख काजें। जूठ खानि जिमि श्वान वानिचित नाहिं कुधी लाजें। ता जनतें दृग ज्ञान चरण सम्यक्त तजि भाजें। या भव त्रास नर्क तप्तायस की पुतली दागे। पर धी भाव नारि पर तजि करि कीरत उजियारी । इनसातो० ॥ ७ ॥ [फलवर्णन पांडव नरपति जुवा खेलि तिनि सही विपति भारी।मांस खाय वकराय सुरा वश यादो गण जारी॥ चारुदत्त वेश्यावश होकर सही वहुत खारी । चोरी करि शिव भूत विप्र पुनि पाई बिपतारी ॥ आखेटक वश ब्रह्म दत्त मृत दर्गति थिति धारी ।नर्क गती रावण ने पाई इच्छित पर नारी। द्रव्य भाव करि सातो सेवत ते नि गोदचारी। इन सातो० ॥८॥जे सतसंग भजत जिन