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जुसम्यक् नैना ॥ अब० टेक ॥ स्वपर पिछाना भ्रम तमभाना जाना अव मत जना ॥ अब० १॥ हित अरु अहित सुतिन के का रण जानि लिये सुख देना ॥ अव०२ कगुरु सुगुरु बच विन पहिचाने मिथ्याभाव मिटना ॥ अब०३ ॥ तिनके जानत सरधो ठानत जग में जीव भ्रमना ॥ अब०४॥ मानिक सुगरु सीख नौका चढ़ि क्योंकर जीव तरेना ॥ अब०५॥
१४ पद-नाग मोटी ॥ जीव अवस्था तीन प्रकोरा-जानत ज्ञानी ज्ञान मंझारा ॥ टेक ॥ बहिरातम अंतर आतम परमातम रूप लखो सुखकारा॥जीव० ॥१॥ विषय भोग में मगन रहत नित हित अनहित को नाहिं बिचारा । हेय उपादेय लखत न शठ बहिरातम भ्रमत भवार्णवधा