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जय वधमान
वर्धमान : तुम बुद्धिमनी ज्ञात होती हो । (दंडाधिकारी से) ठीक है,
दंडाधिकारी ! इस स्त्री के स्थान पर जाकर तुम इमके कथन की जांच करो और यदि इसका कथन मत्य हो-जो होना चाहिए-तो इमके पूत्रों के पोपण की व्यवस्था की जाय । उनका पोषण राज्य की
ओर मे होगा। उन्हें मंग्क्षण-शाला में रखो। दंडाधिकारी : जी महाराज की आजा। म्बी : (चरणों पर गिर कर) महागज ! महाराज ! आप कितने
धर्मात्मा हैं ! न्यायी, प्रजा-पालक, और दीनों का दुःख ममझने वाले!
आप जन्म-जन्मान्तरों तक हमारे गजा रहे और हम आपकी प्रजा ! यशोदा : और दंडाधिकारी ! मुनो । यह रत्नहार महाराज के द्वारा परित्यक्त
है, इसलिए इस रत्नहार के रत्नों को ऐसे परिवारों में वितरित कर दो जो अर्थाभाव में पीड़ित हैं । इस नारी को भी इस रत्नहार
के रत्न प्राप्त हो। दंडाधिकारी : जो आजा, महागनी ! वर्धमान : (यशोदा से) माधु ! यगोदा ! तुमने यह निर्णय करके मुझे अपार
मुख और मन्तोष दिया है। (वंडाधिकारी से) दंडाधिकारी ! इम आज्ञा का शीघ्र पालन हो। और जिन रंक परिवारों को नुम इम रत्नहार के रत्न वितरित करोगे. उनकी सूची तुम भाण्डागारक
कोदोग। दंडाधिकारी : जैमी महाराज की आज्ञा । यदि आदेश हो तो भाण्डागारक ही इन
रत्नों का वितरण करें । मैं आपके आदेश की पूर्ति के लिा वहां उपस्थित रहूँगा।
(पीठिका से रत्नहार उटा लेता है।) स्त्री : महारानी धर्म की देवी हैं और महागज धर्म के देवता !
(मुक कर प्रणाम करती है।)