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चौथा अंक
(परदा उठने के पूर्व नेपथ्य से चर्या-पाठ)
जे य कंते पिए भोगे लद्धे वि पिठ्ठिकुवई। साहोणे चयइ भोए से हु चाइ त्ति वुच्चई॥
(दशवकालिक २-१)
[अर्थात् जो व्यक्ति सुन्दर और प्रिय भोगों को पाकर भी उनसे
पीठ फेर लेता है, सम्मुख आये हुए भोगों का त्याग कर देता है, वही त्यागी कहलाता है।]