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तीसरा अंक
इसी प्रकार तुम अवश्य तपस्या करने जाओ और निर्वाण-सुख को प्राप्त करो, किन्तु कुछ वर्ष शासन करने के उपरान्त । राज्य-शासन से तुम्हें मनुष्य के स्वभाव, व्यवहार, आचरण आदि समझने का अवसर मिलेगा जिससे तुम मानव-कल्याण का मार्ग सरलता से खोज सकते हो। फिर मेरी यह आन्तरिक अभिलाषा है कि मैंने जिस प्रकार स्वामी पार्श्वनाथ के आदर्शों का पालन करते हुए नगर-लक्ष्मी की सेवा की है, उसी भांति तुम भी इस वंश-गौरव के यशस्वी प्रतीक बनो। तुम पिता नहीं हो, इसलिए पिता की आकांक्षाओं को नहीं समझते । तुम्हारी माता ने तुम्हारे अनुरूप एक राज-पुत्री का चयन किया है। उमका नाम यशोदा है, जो सब प्रकार से हमारी कुल-वधू बनने के योग्य है । तुम तो ज्ञानी हो। यह अवश्य जानते हो कि माता के हृदय को पीड़ा पहुंचाना भी दारुण हिंमा है । और तुम अहिंसा का प्रचार करना चाहते हो । माता की ममता तो हमारे राज्य में बहने वाली गंडकी की वह धारा है जो अपने अमृतमय नीर से सबको तृप्त करती है।
(नेपम्य में हलचल)
मिद्धार्थ : यह कैसा शब्द है ?
(एक परिचारिका का शोप्रता से प्रवेश) परिचारिका : महाराज की जय ! महागनी अश्रु बहाने-बहाने संज्ञा-शून्य हो
गई। मिद्धार्थ : यह वाणी की हिमा है । गीत्र उपचार किया जाय । हम अभी आत हैं। वर्धमान : पिता जी ! मेरी वाणी मे किमी प्रकार की हिंमा न हो, इसलिए में
मां के आग्रह और आपके आदेश में विवाह करूंगा। मैं भी मां की मेवा में अभी चलता हूँ।
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