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[स्थान : महारानी विशला का शृंगार-कक्ष
समय : संध्या काल
स्थिति : यह श्रृंगारर-कक्ष राजसी वस्त्रों से सजा हुआ है। कक्ष में अनेक कलाकृतियां, पाट वस्त्रों से सुसज्जित आसंविकाएं। बीच में एक मखमली कालीन और जरी से कढ़ा हुआ तकिया। इस समय महारानी विशला कालीन पर बैठी हुई अनेक छाया चित्रों का अवलोकन कर रही हैं। कुछ चित्र उनके दाएं-बाएं रखे हुए हैं। एक चित्र का गहराई से अवलोकन करते हुए कहती हैं :]
त्रिशला : तो ये कौशल कुमारी हैं ! सुन्दर तो बहुत हैं किन्तु लगता है प्रभातकालीन उषा को हिम- राशि ने धूमिल कर दिया है। ( पुकार कर ) सुनीता !
(नेपथ्य से – आई, महारानी ! )
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त्रिशला : अरे, मैं अपने कुमार वर्धमान के लिए एक सुन्दर पत्नी का चयन करने में लगी हूँ और तू न जाने कहाँ है ।
मुनीता : ( मंच पर आकर ) महारानी की जय ! सेवा में उपस्थित हूँ ।
त्रिशला : देख, ये कितने बहुत-से चित्र हैं । न जाने कहाँ-कहाँ की राजकुमारियाँ हैं । कोई छोटी हैं, कोई बड़ी है, कोई भोली दीखती है और कोई
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