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जय वर्धमान विशला : अभी तो मेरा कुमार संसार को चकित कर देने वाला कार्य करेगा। वर्धमान : यह आपका अमोघ वात्सल्य है, माँ ! सिद्धार्थ : तुम्हारे साथी तुम्हारी निर्भीकता की प्रशंसा कर रहे थे और कह रहे
थे कि तुम कुमार वर्धमान नहीं, महावीर वर्धमान हो । वर्धमान : यह आपका आशीर्वाद है, पिताजी ! विशला : कुमार ! इन सब वीरतापूर्ण कार्यों के करने में तुम्हें कोई चोट तो
नहीं लगी? वर्धमान : आपके आशीर्वाद का कवच भी तो मेरे शरीर पर है, माँ ! उससे
मैं सभी तरह से सुरक्षित हूँ। सिद्धार्थ : मुझे तुम पर अभिमान है, कुमार ! चलो, तुम्हारी कुशलता और
भावी उन्नति के लिए आज हम प्रभु पार्श्वनाथ जी का पूजन करेंगे। वर्धमान : जैसी आपकी आज्ञा। (सिर झुका कर प्रणाम करते हैं । सबका प्रस्थान)
[परदा गिरता है।
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