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जय वर्धमान सिद्धार्थ : माँ के हृदय में यह आशंका स्वाभाविक है किन्तु हमारे वैशाली राज्य
में किसी की दृष्टि ऐसी नहीं है कि कुमार का कुछ अनिष्ट हो । बात तो इसके विपरीत है कि कुमार की दृष्टि से अपशकुन भी शकुन बन जाते हैं, क्रोधी भी शान्त हो जाते हैं और विष भी अमृत बन
जाता है। विशला : महाराज ! यह तो मैंने तभी जान लिया था जब कुमार का जन्म
हुआ था। इसके पूर्व मैंने जो गजराज, वृषभ, सिंह, स्नान करती हुई लक्ष्मी आदि के सोलह स्वप्न देखे थे तो आपके ज्योतिषी ने स्वप्न विचार कर स्वयं कहा था कि मेरा पुत्र धर्म-धुरंधर और अपार
शक्ति धारण करने वाला होगा। सिद्धार्थ : हाँ, मुझे स्मरण है । ज्योतिषी ने यह भी कहा था कि तुम्हारा कुमार
सभी का स्नेह पाकर संसार भर में प्रसिद्ध होगा। उसके उत्पन्न होते ही जो राज्य-वैभव की वृद्धि हुई थी, इसी कारण मैंने उसका नाम
'वर्धमान' रखा था। विमला : तो क्या उसके नाम के अनुरूप उसके परिवार की वृद्धि भी होगी? सिद्धार्थ : अवश्य होगी, इसमें भी क्या सन्देह है ? विशला : मुझे बहुत बड़ा सन्देह है। सिदार्थ : सन्देह का कारण? क्या तुम्हारा संकेत कुमार के विवाह की ओर
विशला : हाँ, न जाने कितने दिनों से यह अभिलाषा मैं अपने मन में
संजोये हुए है। किन्तु सिद्धार्थ : (प्रश्न-सूचक मा में) किन्तु... ? विशला : कुमार की रुचि इस ओर नहीं है। वे एकान्त में बैठे हुए न जाने
क्या-क्या सोचा करते हैं । मैंने जब कभी उनसे इस सम्बन्ध में चर्चा