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कथा-सत्र
विदेह देश की राजधानी वैशाली में ईसा पूर्व ५६६ में भगवान महावीर का अवतरण हुआ। मध्य देश में वैशाली बड़ी प्रसिद्ध नगरी थी। वह लिच्छवियों के बल-पराक्रम से तो प्रसिद्ध थी ही, उसकी गण-व्यवस्था, राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नीति सर्वमान्य थी। नगरी का सौन्दर्य अनेक उपवनों, वापिकाओं और उद्यानों से आकर्षक था।
वैशाली में गंडक नदी प्रवाहित होती थी। उसके तट पर दो उपनगर बसे हुए थे-क्षत्रिय कुंडग्राम और ब्राह्मण कुंडग्राम । क्षत्रिय कुंडग्राम के अधिपति महाराज सिद्धार्थ थे और उनकी रानी थी-त्रिशला। इन्हीं के यहाँ चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को भगवान् महावीर का जन्म हुआ।
महावीर के जन्म के पूर्व महारानी त्रिशला को स्वप्न में १६ दृश्य दिखलायी दिये-गजराज, वषभ, सिंह, स्नान करती लक्ष्मी, फूलों की माला, चन्द्रमा, सूर्य, मीन-युग्म, कलश, सरोवर, सिंधु, सिंहासन, विमान, इन्द्र-भवन, रत्न-राशि और अग्नि । राज-ज्योतिषी ने इन स्वप्नों के आधार पर घोषणा की कि महाराज सिद्धार्थ के यहां ऐसा पुत्र होगा जो अपने प्रताप से संसार का कल्याण करते हुए अमर रहेगा। नौ महीने सात दिन के उपरान्त महारानी विशला ने एक सु-दर्शन पुत्र को जन्म दिया। महाराज सिद्धार्थ ने आनन्द-विभोर होकर बड़ा उत्सव मनाया। सारा नगर भांति-भांति के तोरणों से सजाया गया, दस दिनों तक जनता कर-मुक्त रही, बन्दी छोड़ दिये गये और नृत्य और गान से नगर का प्रत्येक कोना गूंज उठा । जिस समय से पुत्र गर्भ में आया, उसी समय से राज्य में धन-धान्य
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