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________________ ८ भगवान् महावीर के चरित्र में मानवता के समस्त गुण एकत्र हैं। उनके जीवन की घटनाएं इतनी विविधिता और विषमता लिये हुए हैं कि उन सभी का परिगणन नाटक जैसी सीमित और संक्षिप्त विधा में संभव नहीं है। फिर भी उन घटनाओं को जिनसे भगवान् महावीर की वैचारिक शृंखला संयोजित होती है, इस नाटक में सुसज्जित करने का प्रयास किया गया है । इस भाँति घटनाओं की अपेक्षा मनोविज्ञान की भंगिमाओं को उभारने का अवसर अधिक मिल गया है। भगवान् महावीर का चरित्र तो अपने अखंड व्रत में स्थिर (Static ) है किन्तु उनके व्यक्तित्व से संघर्ष करने के लिए जो विषम और विपरीत घटनाएँ (Dynamic) सामने आती हैं उनसे विरोधी पात्रों और घटनाओं के अन्तर्पट उद्घाटित होते हैं। शृंगार के आक्रमण से वैराग्य कितना स्थिर और अटल है, इसके रूप और प्रतिरूप भी सामने आ गये हैं । इस नाटक के लिखने में मुझ से जितना शोध कार्य संभव हो सकता था, वह मैंने करने का प्रयत्न किया है । यदि मेरे नाटक 'जय वर्धमान' से हमारे देश के राष्ट्रीय और मानवतावादी दृष्टिकोण को प्रश्रय मिलेगा, तो मैं अपना श्रम सार्थक ममभूंगा । साकेत इलाहाबाद - २ दीपावली, १९७४ e रामछुमार कम
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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