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________________ अपनी ओर से महावीर वर्धमान की पुण्य तिथि पर मेरा यह नाटक प्रकाशित होने जा रहा है। महावीर वास्तव में इतने कष्ट-सहिष्णु और लोककल्याण के क्रियाशील क्रान्तिकारी थे कि उनसे किसी भी महापुरुष की तुलना नहीं की जा सकती। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य जैसे महान् व्रतों से उन्होंने मानव-जीवन को वास्तविक संबोधि प्रदान की । एक ओर तो संसार के चरम आकर्षणों से विरक्ति और दूसरी ओर सत्य और अहिंसा के लिए कठोरतम कष्ट सहन करने की क्षमता अन्य किस साधक में संभव हो सकी है ? मानवतावादी दृष्टिकोण उनके समक्ष इतना प्रखर था कि उसमें वर्गवाद और जातिवाद के लिए कोई स्थान ही नहीं था। विचार-समन्वय से सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करने का दृष्टिकोण उनके सामने था : मनुष्य जातिरेकव जाति नामोदयोभवा। वृत्ति मेदात् हितत् भेदाः चातुर्विष्यमिहारनुते ॥ (अर्थात् मनुष्य-जाति एक ही है और यह जाति-नाम कर्म के कारण ही उद्भव होता है । वृत्ति-भेद से ही जाति के चार भेद (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) माने जाते हैं ।) उत्तराध्ययन में उल्लेख है : कम्मणा बंमणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। बइसो कम्मणा होइ, मुद्दो हवइ कम्मणा ॥ (अर्थात् कर्मों से ही मनुष्य ब्राह्मण होता है, कर्मों से ही क्षत्रिय, कर्मों से ही वैश्य और कर्मों मे ही वह शूद्र होता है ।)
SR No.010256
Book TitleJay Vardhaman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamkumar Varma
PublisherBharatiya Sahitya Prakashan
Publication Year1974
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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