________________
पाँच अंक
[है पुरुष ! तू स्वयं ही अपना मित्र है, फिर बाहर किसी अन्य मित्र की खोज क्यों करता है ? तू अपने आपका निग्रह रख, इससे तू समस्त दुःखों से मुक्त हो जायगा ।]
(कुछ क्षण बाद दो ग्रामीण आते हैं ।)
पहला : मुनिराज को प्रणाम !
दूसरा : महामुनि को प्रणाम !
पहला : महाराज ! यह अस्थिक ग्राम है। यहाँ से आप चले जायें तो कुशल है । यहाँ एक बड़ी विपत्ति है ।
दूसरा : विपत्ति तो है, महाराज ! परन्तु उसके लिए अभी समय है । यहाँ एक यक्ष रहता है । वह संध्या समय लौटता है। अभी संध्या में कुछ देर है । किन्तु वह यक्ष इतना क्रूर और भयंकर हे कि जो उसके सामने पड़ता है, उसे ही मार डालता है । आप यहाँ से चले जायें ।
वर्धमान : नहीं, साधक ! मुझे किसी में भय नहीं है। जिसे अपनी आत्मा में विश्वास नहीं है, वही भय का भाजन है । जिसने सत्य को नहीं पहचाना, वही अशान्त है ।
पहला : मुनिराज ! हम लोग तो बहुत अशान्त हैं । हम लोग टी अस्थिक ग्राम के निवासी हैं। मेरा नाम इन्द्रगोप और मेरे साथी का नाम चुल्लक है । हम सब लोग उस यक्ष से आतंकित हैं। वह उसी पास के चैत्य में रहता है। यहाँ कोई आया नहीं कि उसने उसका वध किया | चुल्लक: हाँ, महाराज ! कुछ दिन हुए एक महामुनि यहाँ आये थे, इसी चैन्य में निवास करने | हम लोगों ने उन्हें यहां की स्थिति बतलायी । उनसे प्रार्थना की कि आप यहाँ न ठहरे। उन्होंने हमारी बात सुनी नहीं । वे रात में यहीं रुके । प्रातःकाल यहां के ग्राम वासियों ने देखा कि चैत्य के बाहर उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े पड़े हुए है ।
१०५