________________
तुम इस जग के नही जीव होमहाज्योति की प्रबल नीब हो।
वही करोगे, जिसमे निश्चयहोगी धरती दुख से निर्भय ।
किन्तु कहो क्या, बोलूं मुख से माता ओरि पिता के दुख से ।
अभी कहाँ कुछ त्राण मिला हैलगता मन पर धरी शिला है।
ऐसे में जब तुम भी मेरेपास न होगे सॉझ-सवेरे।
तब मै कैसे जी पाऊँगाकैसे सॉस चैन की लूँगा।
फिर भी मैं कुछ रोक न सकतापथ से तुमको रोक न सकता।
जिसमे जग का पुण्य समाहितउसको वाँधू अपने ही हित।
70/जय महावीर