________________
नन्दन वन मे देव - गणो की
सभा तुरत लग जाती है। वर्धमान की 'जय' तत्क्षण ही
वहाँ पहुँच जग जाती है।
दिशा-दिशा मे गूंज रहा था
वर्धमान की जय का स्वर । शिखर-शिखर तक गूंज रही थी
प्रतिध्वनि उसकी ही सुन्दर ।।
स्वय इन्द्र ने भरी सभा मे
उनको समुचित मान दिया। "महावीर" उद्घोपित कर के
उनको नव सम्मान दिया ।
वर्धमान को 'महावीर' यह
पावन नाम प्रदत्त हुआ। उनके गुण-गौरव की महिमा
सुनकर सब आसक्त हुए।
58 / जय महावीर