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खेल रहे थे 'आमल की' का
खेल एक दिन उपवन मे। एक देव बन सर्प भयकर
आया तत्क्षण उस वन में ।।
विषधर अपने फन को ताने
शीश उठा फुकार उठा। स्वय पवन भी क्षुभित गरल से
होकर अपरम्पार उठा।
साथी-सगी जो भी थे सव
देख उसे घबडाते है। खेल छोडकर डर के मारे
वे सव भागे जाते है।
कोई कहता भागो जत्दी
विषधर वडा भयकर है। वर्धमान ने कहा, रोक कर
मुझे नही इसका डर है ।।
जय महावीर /53