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बालक पन से ही है इसमेंलक्षण सव पुरुषोत्तम के । भरे हुए हैनिर्भय गुण नर- उत्तम के ||
कूट-कूट कर
यह है, जिसको इस धरती पर - कोई डरा नही सकता ।
इनके मन को मलिन जरा भीकोई वना नही सकता ।
महज आठ ही वर्ष अभी तोइनके होने को आये ।
लेकिन खेल विकट पौरुप केकितने ही है दिखलाये ॥
देवो मे ही कितने
कितने आकर
52 / जय महावीर
आ केकठिन परीक्षा लेते है । परम तत्व की इनसे दीक्षा लेते है ॥