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विप्र महाजन को बुलवायासबको सादर वहाँ बिठाया। दान दिया अञ्जलि मे भरकरकिया सभी कुछ स्वय निछावर।
रोम-रोम तक उसका जागादुख-दैन्य सव भव से भागा। करना है अब प्रभु का स्वागतयह अपूर्व क्षण का है आगत ।
मन मे निर्मल भाव जगायेसब ने मिलकर मोद मनाये। आनन्द लहर लहराई भू परपुष्प खिले खुशियो के मनहर ।
40/ जय महावीर