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धन्य वही है, जिसको मिलतीऐसी निर्मल निर्मल जोत । प्रेम भाव में रहता है वह - प्राणी
ओत-प्रोत ।।
सभी जीव
एक सदृश हैंनही किसी मे भेद ।
एक तरह ही सभी मनातेहर्प-शोक ओ खेद ||
मानव को उन्नत करती हैऔर न कोई चीज ।
एक मात्र है जहाँ ज्ञान का - निर्मल सात्विक बीज ॥
उसके ऊपर कभी न पडताअघ का कुटिल प्रभाव ।
सदा अनघ है, सत्यरूपमय
उसका स्वय स्वभाव ||