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अन्तिम था कल्याणक उत्सव
नई लहर लहगई। इन्द्रादिक देवो ने मिलकर
प्रभु की चिता सजाई॥
क्षीर सिन्धु के जल से प्रभु का
शुभ अभिपेक कराया। हरि चन्दन का लेप लगाकर
रेशम वस्त्र चढाया ॥
स्वर्ण-रत्न के मुकुट और
___आभूषण उन्हे पिन्हाए। देवो की निर्मित शिविका पर
प्रभु को ला वैठाए।
सव देव-मनुज मिल शिविका को
सादर वहाँ उठाया। शोकाकुल से अश्रु-भरे वे
चिता जलाने आए।
138/ जय महावीर