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सकल सृष्टि की पूर्ण व्यवस्था
का जत्र ज्ञान समाया ।
होकर वे अहित जगत को - शुद्ध ज्ञान समझाया ॥
कुछ भी दृश्य अदृश्य नही थाउनके दृग के आगे ।
भव का विभव सभी सम्भवथालेकिन सब थे त्यागे ॥
मूर्त-अमूर्त नही था कुछ भी तीनो काल प्रकट थे । तपस्या उनकीतप के दाह विकट थे |
उग्र- प्रचड
उनके केवल ज्ञान-प्राप्ति से
इन्द्रासन तक
" तुरत रचाएँ" समवसरण हमदेव यही थे वोले ॥
डोले ।