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________________ 60 ] Jain Granth Bhandars Jaipur & Nagaur संवत् सौलह सै प्रमाण । उपर सही इतासी जाण । निन्यायवै कह्या निरदोष । जीव सवै पावै पोष ।। २६६ ॥ भाद्रव सुदि तेरस सनिवार । कड़ा तीन से पढ़ अधिकाय । ' इ सुणता सुख पासी देह । श्राप समाही करै सनेह ।। ३०० ।। इति श्री श्रेणिक चौपई संपूरण मीती कातिक सुदि १३ सनीसरवार कर्के सं० १८२६ काडी ग्रामे लीखतं बख्तसागर बाचे जहनै निम्सकार नमोस्तं वांच ज्यो जी। No.7 ": Ref. No. 254 VAIDARBHI VIVAHA Author ----PEMRAJ Size --10" x 14" Extent --6 Folios Description - Country paper, thin, and greyish; Devanagari characters in good hand-writing; borders ruled in four lines; the . condition of the manuscript is not satisfactory; it is com plete work written in Rajasthani Verse. Subject ----KATHA Begins -जिण घरम माही दीपता करो धरम सुरंग सो राधा राजा राणेइ . ढाल. भवहु रंग ॥१॥ रंगचिणरत्य न भावसी किंवता करो विचार । पढता सवि सुख संपज हूरस :भान हारई भाव ।।. मुख मामणे हो रंग महल में निस भार पोढी सेज जी। दोघ अनता उफण्या जाणेनदार विछोराछ मेह जी । ..... Ends --कवनाथ . सुजाण छ । वैदरभी वेस्वार ।... सुखमनता. भोगिया हुवा : अरणगार ।। दान देई ‘चारित लीयो, होवा तो जय जयकार । . . पेमराज गुरु इम भणी, मुकत गया तत्काल ॥.. ‘भरणे गुणै जै सांभली. वैदरभी तणो विवाह । • भएण तास वे सुख संपजे पहुत्या मुकत मंझार ॥ इति वैदरभी विवाह संपूर्ण ।।
SR No.010254
Book TitleJaipur aur Nagpur ke Jain Granth Bhandar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Jain
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year
Total Pages167
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size7 MB
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